
विशेष संवाददाता केशब बस्याल शर्मा भोपाल से महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस में चुनाव पूर्व भगदड़ जैसे हालात थे. कांग्रेस के कई दिग्गज नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद लगा कि कांग्रेस में अब भगदड़ बंद हो जाएगी लेकिन मतदान की तारीख घोषित होने के बाद कांग्रेस की हालात और चिंताजनक हो गई.
महाराष्ट्र (Maharashtra) और हरियाणा (Haryana) में विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2019) के लिए राजनीतिक बिसात पर मोहरें बिछ चुकी हैं. दोनों राज्यों में राजनीतिक दलों (Political parties) ने अपने-अपने गठबंधन का चेहरा साफ कर दिया है. साथ ही अपने उम्मीदवारों (Candidates) का भी ऐलान कर दिया है, लेकिन कांग्रेस (Congress) लाख कोशिशों के बाद भी हरियाणा में कोई नया सहयोगी नहीं तलाश पाई है.
महाराष्ट्र (Maharashtra) में भी कांग्रेस को केवल अपने पुराने सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) का ही साथ मिला है. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि टुकड़ों में बटा विपक्ष क्या इन दोनों राज्यों में सत्ताधारी बीजेपी (BJP) को चुनौती दे पाएगा? क्योंकि अभी तक बीजेपी के चुनाव प्रचार (Election Campaign) की जो रणनीति सामने आ रही है उसमें एक बात साफ है कि ‘मोदी ब्रांड’ के नाम पर पार्टी दोनों राज्यों में चुनाव लड़ेगी. हालांकि दोनों राज्यों में मुख्यमंत्रियों के चेहरे को भी सामने रखा जाएगा. इस बात के संकेत केंद्रीय गृहमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी सभाओं में जम्मू-कश्मीर में धारा 35ए और अनुच्छेद 370 हटाने के जिक्र के साथ ही दे दिया था. उन्होंने कहा था कि इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही होंगे.
लाख कोशिशों के बाद भी कांग्रेस को नहीं मिला नया साथी
हरियाणा में चुनाव पूर्व कांग्रेस और बीएसपी के बीच गठबंधन की बात हुई भी, लेकिन राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीएसपी के सभी छह विधायकों को कांग्रेस में शामिल कराकर बीएसपी को ऐसा झटका दिया कि गठबंधन तो दूर की बात अब पार्टी सुप्रीमो मायावती ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दे रही हैं जो बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकें.
पांच साल में क्या-क्या बदला
हरियाणा में 2014 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी को चार फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. 2014 के विधानसभा चुनावों में दूसरे स्थान पर रहने वाली इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) अब कई हिस्सों में बंट चुकी है, वहीं कांग्रेस की हालत भी अच्छी नहीं है. 2014 से 2019 आते-आते कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर पहुंच गई है और नेता सड़क पर उतरकर शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. महाराष्ट्र में भी कांग्रेस ने नए साथी तलाशने की कोशिश जरूर की, लेकिन शीर्ष नेता पार्टी में मची भगदड़ को बचाने में ही जुटे रहे और गठबंधन के साथी बीजेपी-शिवसेना के साथ हो लिये.
महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस में चुनाव पूर्व भगदड़ जैसे हालात थे. कांग्रेस के कई दिग्गज नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद लगा कि कांग्रेस में अब भगदड़ बंद हो जाएगी लेकिन मतदान की तारीख घोषित होने के बाद कांग्रेस की हालात और चिंताजनक हो गई.
हरियाणा में पहले जहां भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने अकेले कांग्रेस के चुनावी एजेंडे की घोषणा कर पार्टी के गुटबाजी को सड़क पर ला दिया. वहीं पार्टी के दिग्गज नेता अशोक तंवर ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर पर प्रदर्शन किया और पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. कुछ ऐसा ही हाल महाराष्ट्र का है, यहां भी पार्टी के दिग्गज नेता और मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम ने टिकट बंटवारे में अनदेखी का आरोप लगाते हुए कांग्रेस का प्रचार करने से इनकार कर दिया है.
उर्मिला मातोंडकर ने भी नाराज होकर छोड़ी थी पार्टी
इससे पहले लोकसभा चुनाव 2019 से ऐन पहले कांग्रेस में शामिल हुई अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने भी अंदरूनी गुटबाजी का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी. ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस इन दोनों राज्यों (महाराष्ट्र और हरियाणा) में सत्तारूढ़ बीजेपी से मुकाबला करेगी या खुद के बागी नेताओं से? क्योंकि कांग्रेस के जो नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी में गए हैं या जिन नेताओं ने कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है उनका अच्छा खासा वोट बैंक है.