स्कूलों की बड़ी बड़ी फीस तो ट्यूशन भेजने की मजबूरी क्यों… ?

हर पालक अपने बच्चों की उच्चस्तरीय परवरिश और उच्चस्तरीय शिक्षा पर जोर दे रहा है। उनके लिए हर संभव व्यवस्था कर रहा है। पालक चाहते है इस कॉम्पिटिशन के दौर में कहीं उनका बच्चा पिछड़ ना जाए। दूसरों से योग्यता में कहीं कम ना रह जाए। इसी कारण अपने बच्चों को शहर के श्रेष्ठ से श्रेष्ठ स्कूल में भर्ती करवाते है। अभिभावक सोचते है कि वहां उसके बच्चे को विशेष व बेहतर शिक्षा मिल सकेगी। उसके लिए वो(पालक/अभिभावक) ऊंची ऊंची फीस भी भरते है। लेकिन उसके बावजूद अपने बच्चों को ट्यूशन पर भेजना पड़ता है। आज के समय मे बड़े बड़े नामी स्कूलों के हर क्लास के 90 प्रतिशत बच्चें ट्यूशन या कोचिंग पर जा रहे है। क्या ये स्कूल बच्चों को पर्याप्त पढ़ाई कराने में समर्थ नही है। या इनके शिक्षक कहीं ना कहीं ढिलाई बरत रहे है।
ये बड़े बड़े स्कूल ऊंचे परीक्षा परिणामों का दावा करते है। सुपर टेलेंटेड और हाई क्वालिफाइड टीचर्स रखते है। यदि हाई क्वालिफाइड टीचर्स से एजुकेशन ऐसे स्कूलों से मिलने का दावा होता है तो कोचिंग पर क्यों जाना पड़ रहा है। जब इतनी ऊंची फीस वसूली करते है तो बच्चों को ट्यूशन भेजना क्यो पड़ रहा ?
इस दौर में पढ़ाई में कमजोर बच्चें को भी ट्यूशन जाना पड़ रहा है और पढ़ने वाले बच्चें को भी। आखिर ऐसा क्या है जो ट्यूशन पर पढ़ाया जा रहा है और स्कूल में नही। ट्यूशन विकल्प बनने के पीछे मुख्य कारण कहीं स्कूलों में गिरता शिक्षा का स्तर तो नही।
साफ तौर पर स्कूलों में पढ़ाई का स्तर कहीं ना कहीं कम होना इसका बड़ा कारण ही दिखाई पड़ता है। कोई भी ऐसा स्कूल देखने को नही मिलता जिसका विद्यार्थी ट्यूशन या कोचिंग नही जाता हो।

मजेदार बात तो यह देखने को मिलती है कि वार्षिक परिणामों की घोषणा के बाद ट्यूशन और कोचिंग क्लास वाले अपने अपने टॉपर्स के फोटो सहित विज्ञापन देते है और स्कूल संचालक भी उन्ही बच्चों का फोटो और नाम टॉपर्स सूची में लगाते है। दोनो देखकर कंफ्यूज़न ये होता है कि आखिर बच्चें ने श्रेष्ठता कहाँ से हासिल की?

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