तानाशाही और अफसरशाही शासन का गढ़ बनता बिहार

बिहार में शिक्षकों एवं भावी शिक्षकों के साथ हो रही अफशाही कानून आज हर समाचार पत्र की सुर्खियां है? बिहार सरकार शिक्षा में सुधार कर रही है ,लेकिन जो नीति अपना रही है वह निश्चित ही निंदनीय है? एवं अफसरशाही को बढ़ावा दे रही है?
मुख्यमंत्री कार्यालय और सचिवालय के अधिकारियों और कर्मचारियों के अवकाश
5 दिवसीय कार्य दिवस (52 शनिवार +52 रविवार) के कारण अवकाश- 104 दिन
अर्जित अवकाश- 30दिन, औपबंधित,अवकाश- 02 दिन
आकस्मिक अवकाश- 14
सार्वजनिक अवकाश- 23
कुल अवकाश- 173
बैंक कर्मचारी की भी अवकाश 173- 28 ( पहला और चौथा शनिवार) = 145 है,
लेकिन बिहार में तानाशाही रवैया अपनाते हुए शिक्षकों की नई अवकाश तालिका के अनुसार — जो एक
रविवार अवकाश- 52 दिन
अर्जित अवकाश- 00 दिन
औपबंधित अवकाश- 00 दिन
आकस्मिक अवकाश- 16 दिन
सार्वजनिक अवकाश- 60 दिन
कुल अवकाश- 128 दिन
इन सभी अवकाश तालिका पर नजर डाली जाए तो शिक्षकों के साथ भेदभाव स्पष्ट दिख रही है ।अन्तर = 173 – 128 = 45 दिन और 145-128 = 17 दिन अर्थात इस सत्र में शिक्षक बाकी कर्मचारियों की अपेक्षा 45 दिन और बैंक कर्मियों की अपेक्षा 17 दिन अधिक कार्य करेंगे ,
जबकि राज्य कर्मचारियों को मिलने वाली किसी प्रकार की कोई सुविधा यथा चिकित्सकीय , पेंशन आदि शिक्षकों को प्राप्त नही है।
यही एक बड़ी वजह है कि, बिहार के शिक्षक निराश‌ एवं आक्रोशित हैं। आक्रोशित होना भी स्वाभाविक है क्योंकि सभी शिक्षक राज्य के सरकारी स्कूलों में पदस्थापित हैं किन्तु, राज्य सरकार ने इन्हें राज्य कर्मी नहीं मानती है ? और नित नये नियम लागू कर शिक्षकों को परेशान कर रही है?
बिहार की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है और सरकार चाहती है कि,इसे रातोंरात सुधार दी जाय??क्या यह संभव है??
बिहार की सरकारी शिक्षा व्यवस्था में गिरावट एकाएक तो नहीं आई है?? एक ही मुख्यमंत्री एवं एक ही गठबंधन की सरकार बिहार में तीसरे सत्र में शासन कर रही है फिर अबतक सरकार क्या कर रही थी?? शिक्षा के गिरते स्तर का तमाशा देख रही थी??
अब जब लोकसभा चुनाव सामने है तो एकाएक बिहार सरकार की नींद खुली है और तानाशाही रवैया अपनाते हुए व्यवस्था में सुधार कर रही है??
सरकार के सभी विभागों में सत्र दर‌ सत्र कार्य के साथ सुधार होनी चाहिए परंतु ऐसा लगता है जैसे बिहार सरकार चुनावी वर्ष में ही कार्य करती है बाक़ी दिनों में सिर्फ और सिर्फ राजनीति करती है और इस राजनीति के कारण शिक्षक और भावी शिक्षक दोनों का भविष्य अंधकारमय है!
शिक्षक’ समाज को सही दिशा और दशा देने की काबिलियत रखता है और इन्हीं शिक्षकों के साथ बिहार सरकार मजाक कर रही हैं शिक्षकों का उपहास उड़ा रही है??
बिहार के शिक्षकों की ना तो सम्मान जनक वेतन है और न ही अन्य सुविधाएं और न ही सरकारी स्कूलों की हालत सही है और न बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने आते हैं ??
क्योंकि व्यवस्था पूर्ण रूप से क्षत विक्षत है और सरकार मुकदर्शक!

लेखक -चद्रकांत पुजारी
गुजरात

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