संवाददाता- कालु डोडियार
झाबुआ -असत्य पर सत्य की जीत के पर्व विजयादशमी की शाम मंगलवार को राणापुर रोड स्थित बिलीडोज मैदान पर 51 फीट के रावण का दहन किया गया। कालिका माता मंदिर परिसर से विजय जुलूस निकला । इसमें राम-लक्ष्मण और हनुमान का रूप धरे कलाकार शामिल रहे। जुलूस के मैदान में पहुंचते ही जय जय श्री राम और धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो के नारों से पूरा मैदान गूँज उठा. डेढ़ घंटे से अधिक समय तक चलती आतिशबाज़ी ने पुरे शहर का माहौल रंगीन कर दिया।
ये परंपरा शहर में 369 साल से अनवरत जारी है…
इतिहासविद डॉ. केके त्रिवेदी के अनुसार झाबुआ में रावण दहन की परंपरा 1648 में शुरू हुई थी। राठौर वंश के तीसरे शासक माहसिंह ने बदनावर से राजधानी स्थानांतरित कर झाबुआ को राजधानी बनाया था। उन्होंने पहली बार झाबुआ में दशहरा मैदान पर रावण दहन की परंपरा शुरू की। तब से अब तक विजय के प्रतीक पर्व दशहरे पर रावण दहन हो रहा है। इसी कड़ी में मंगलवार को रावण दहन हुआ । इस दौरान आतिशबाजी आकर्षण का केंद्र रही ।
नगरपालिका ने आतिशबाजी का कार्य देवास के कलाकारों को दिया वही रावण का पुतला थांदला से कलाकारों से बनवाया । शाम 5:30 बजे से आतिशबाज़ी शुरू हुई जो रावण दहन के समय तक चलती रही। सोमवार को ढांचा बनकर तैयार हो गया। आसपास के हजारों वनवासियों के आयोजन में शामिल होने के चलते रावण के पुतले से 100 मीटर क्षेत्र में बेरिकेड्स लगाए गए।
यहाँ 39 साल से हो रहा दहन
गोपाल कॉलोनी में रहने वाले त्रिवेदी परिवार द्वारा 39 वर्षों से रावण दहन कार्यक्रम किया जा रहा हैं। ये परंपरा अभी तक नहीं टूटी है। इसे उन लोगों ने अपनी युवावस्था में शुरू किया था, जो अब बुजुर्ग हो चुके हैं। अब जिम्मेदारी नई पीढ़ी ने उठा ली। त्रिवेदी परिवार का ये रावण ऊंचाई तो 10 फीट के लगभग होता है, लेकिन इसकी सुंदरता निहारने शहर से कई लोग आते हैं। मंगलवार की शाम भी रावण दहन किया गया। रावण दहन को देखने के लिए कॉलोनी के साथ-साथ अन्य स्थानों से भी लोग आए






