प्रणाम पाठशाला योजना भी सरकारी अमले की लापरवाही की भेंट चढक़र स्वयं ही अंतिम सांसें ले रही

भोपाल (DG News)। प्रदेश में सरकारी स्कूलों के हाल पहले से ही बेहाल हैं। इस दशा को सुधारने के लिए तत्कालीन शिव सरकार द्वारा शुरु की गई प्रणाम पाठशाला योजना भी सरकारी अमले की लापरवाही की भंट चढक़र स्वयं ही अंतिम सांसें ले रही है। खास बात यह है कि योजना का प्रचार-प्रसार न होने से आम लोगों को इसके मामले में जानकारी तक नहीं मिल पा रही है। यही वजह है कि स्कूलों में दान देने के लिए लोग आगे नहीं आ रहे हैं। गौरतलब है कि योजना के शुरुआती दो साल में ही समाजसेवियों व एनजीओ ने प्रदेश के सरकारी स्कूलों को करीब 38 करोड़ कीमत का सामान दान में दिया था। इसमें अकेले राजधानी के स्कूलों को ही 80 लाख का दान मिला है। दरअसल सरकारी स्कूलों को जनसहयोग से बेहतर बनाने के लिए तत्कालीन भाजपा सरकार ने प्रणाम पाठशाला योजना लागू की थी। योजना में उन पूर्व छात्रों को स्कूल में बुलाने का तय किया गया था जो स्कूल से पढक़र निकले हों और उच्च पदों पर आसीन हों या फिर सफल बिजनेसमेन हों। सरकार का मानना था कि ये लोग स्कूल आने पर कुछ न कुछ स्कूल के लिए दान देंगे, इससे स्कूल की तस्वीर सुधरेगी। राज्य शिक्षा केन्द्र के माध्यम से योजना को लागू किया गया और इसे प्रणाम पाठशाला-विद्यालय उपहार योजना का नाम दिया गया। इस योजना के तहत उपहार दाता के रूप में कोई भी व्यक्ति/ संस्था योजना से जुड़ सकते है। उपहारदाता का शाला से जुड़ाव मात्र उपहार देने तक ही सीमित नहीं रहेगा। अपितु शाला एवं उपहार दाता के बीच जीवंत संपर्क बना रहेगा ताकि वह भी शाला के भौतिक एवं अकादमिक विकास के साक्षी बन सके। योजना के लागू होने के बाद शुरुआती समय में कुछ दानदाताओं ने रूचि दिखाई। इसमें सबसे ज्यादा लोगों ने कापी, किताबें, स्टेशनरी के सामान वितरित किए। कुछ एनजीओं ने स्कूलों की बाउंड्रीवाल व कक्ष भी बनवाए। योजना में प्रचार-प्रसार की कमी के चलते धीरे-धीरे योजना दम तोड़ती नजर आ रही है। राज्य शिक्षा केंद्र के आंकड़ों के अनुसार बीते दो साल में प्रदेश भर के सरकारी स्कूलों में करीब 38 करोड़ का दान मिला है।
जन्मदिन मनाने का प्रावधान


दानदाता तीन श्रेणियों में उपहार दे सकते है। इसमें भूमि, भवन, राशि या सामग्री शामिल है। उपहार दाता छात्रावास में बच्चों के साथ जन्मदिन या सालगिरह भी मना सकते है।
आरटीई के बाद भी नहीं मिल सकीं मूलभूत सुविधाएं
शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद प्रदेश के सरकारी स्कूलों में तीन साल के अंदर सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना थी। लेकिन दस साल से ज्यादा का बीत जाने के बाद भी आज भी सरकारी स्कूल मूलभूत सुविधाओं के वंचित है। स्कूलों में बाउंड्रीवाल नहीं है, तो बच्चों के पास बैठने के लिए फर्नीचर नहीं है। इस बार ट्रांसफर-पोस्टिंग होने से ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षक तक नहीं बचे है।
यह है प्रदेश के स्कूलों की जरूरत
अतिरिक्त कक्ष का निर्माण 2334
अन्य प्रयोगशालाओं के उपकरण उपलब्ध कराना 713
इलेक्ट्रिक सामग्री 36510
कक्ष के लिए भूमि उपलब्ध कर नियमानुसार उसका नामांतरण करना 227
ख्ेाल मैदान के लिए भूमि, खेल, सामग्री मैदान का समतलीकरण 7276
छात्रावास के लिए किचन हेतु 8273
पेड़ पौधों की फेंसिंग 2599
पुननिर्माण करवाना 666
पुस्तकालय हेतु 18102
फेंसिंग का निर्माण करवाना 1445
बैग 69
भवन को सभी ऋतुओं के अनुसार सुविधायुक्त बनवाना 955
विज्ञान के उपकरण उपलब्ध करना 2036
विद्यालय के लिए बाउंड्री वाल बनवाना 8736
विद्यालय की आवश्यकता के अनुसार फर्नीचर उपलब्ध कराना 17119
विद्यालय भवन की पुताई करवाना 3862
विद्यालय भवन की मरम्मत करवाना 5985
विद्यालय में वाटिका निर्माण 3133
विभिन्न समारोहों के लिए सामग्री उपलब्ध करवाना 2927
शुद्ध पेय जल हेतु 29163
शाला प्रबंधन समिति की स्वीकृति के अनुसार अन्य कार्य 2364
शासकीय नियमो के अंतर्गत विद्यालय भवन भूमि उपलब्ध कर
नियमानुसार उसका नामांतरण करना 500
शिक्षण सहायक सामग्री 22676
शौचालय के ऊपर ओवरहेड टैंक लगवाना 4466
सौर ऊर्जा उपकरणों की स्थापना करना 2700
(यह वह आंकड़ें हैं जो स्कूलों ने अपनी जरूरत के हिसाब से राज्य शिक्षा केंद्र को भेजे हैं। )

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