उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि समाज में भागीदारी, समानता और प्रगति लाने के लिए शिक्षा सबसे प्रभावी और रूपांतरकारी तंत्र है। उन्होंने रेखांकित किया कि लोगों की शिक्षा के अतिरिक्त सामाजिक परिस्थितियों को कोई नहीं बदल सकता है।
आज असम में डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के 21वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने छात्रों से “परिवर्तन के एजेंट“ बनने और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए कार्य करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्र 2047 में अपनी स्वाधीनता की शताब्दी मनाएगा, आप उसी भारत के निर्माता और योद्धा हैं।
आठ पूर्वोत्तर राज्यों को भारत की “अष्ट लक्ष्मी” के रूप में प्रशंसा करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों के विकास और योगदान के बिना, भारत का विकास अधूरा रहेगा। उन्होंने इन क्षेत्रों की भाषाई विविधता और साहित्यिक परंपराओं को संरक्षित करने की दिशा में काम करने के लिए डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय की सराहना की। उन्होंने कहा कि हमारी भाषाओं का संरक्षण बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे हजारों वर्षों में विकसित हुई हैं।
अमृत काल में भारत की मुख्यधारा की कथा में पूर्वोत्तर को शामिल करने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने हमारे इतिहास और स्वाधीनता संग्राम में पूर्वोत्तर के गुमनाम योद्धाओं के योगदान को उजागर करने के लिए एनसीईआरटी और भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर) की प्रशंसा की।
भारत को लोकतंत्र की जननी और दुनिया का सबसे जीवंत लोकतंत्र बताते हुए उपराष्ट्रपति ने सवाल किया कि हममें से कुछ देश के भीतर और बाहर हमारे लोकतंत्र की निंदा क्यों करते हैं? उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत में किसी भी तरह की चुप्पी के अधीन नहीं है।
संसद को हमारे लोकतंत्र का मंदिर बताते हुए उपराष्ट्रपति ने बलपूर्वक कहा कि यह एक ऐसा मंच है जहां जनहित के मुद्दों पर बहस, विचार-विमर्श, चर्चा और निर्णय लिया जाता है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक व्यवधान, संस्थानों और प्रतिनिधियों के प्रति सम्मान और विश्वास का भाव कम करता है। इसलिए उन्होंने एक इकोसिस्टम बनाने का आह्वान किया ताकि हमारे सांसद, संविधान के संस्थापकों की मूल भावना के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करें।
श्री धनखड़ ने उतीर्ण छात्रों को शुभकामनाएं देते हुए अपने गुरुओं और अपने अल्मा-मेटर को न भूले। उन्होंने कहा कि इस संस्थान के पूर्व छात्रों के रूप में आपको अपने विश्वविद्यालय के कल्याण के लिए किसी भी रूप में योगदान देना चाहिए।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने असम की प्रतिष्ठित विभूतियों को डॉक्टर ऑफ साइंस और को डी. लिट डिग्री (मानद उपाधि) से सम्मानित किया। उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में पौधारोपण किया।
इस अवसर पर असम के राज्यपाल और डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री गुलाब चंद कटारिया, असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा सरमा, केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और श्रम और रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली और असम सरकार के शिक्षा मंत्री डॉ. रानोज पेगू भी उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जितेन हजारिका, बोर्ड के सदस्य, निदेशक, संकाय, कर्मचारी, विद्यार्थी और छात्रों के पारिवारिक सदस्य भी मौजूद थे।