भारत कर उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ आज अपने विद्यालय – सैनिक स्कूल चित्तौड़गढ़ पहुंचे और वहाँ छात्रों, पूर्व-छात्रों और शिक्षकों से मिले। ज्ञात रहे कि श्री धनखड़ ने सन 1962 से 1967 तक अपनी स्कूली शिक्षा यहीं से पूरी की थी।
एक रोचक घटना का जिक्र करते हुए उपराष्ट्रपति जी ने बताया कि उनके बड़े भाई श्री कुलदीप धनखड़ भी सैनिक स्कूल में पढ़ते थे और उन्हें एक बार स्कूल से सजा मिली, साथ ही एक लैटर उनके पिता को भेजा गया जिसमें लिखा था “Your ward has been awarded punishment for camel riding.” चूँकि गांव में अंग्रेजी किसी को आती नहीं थी अतः उन लोगों ने समझ लिया कि कुलदीप को स्कूल से “अवार्ड” मिला है।
श्री धनखड़ ने बताया कि बेहद कम उम्र में सैनिक स्कूल में आने से उनकी मां को बहुत चिंता रहती थी। अतः वे रोज एक पोस्टकार्ड अपनी मां के लिए लिख कर भेजा करते थे। “जब मैं घर जाता था तो मां खाली पोस्टकार्ड का एक पैकेट मुझे दे दिया करती थीं” उन्होंने बताया।
अपने कैरियर के शुरुआती दिनों के बारे में बात करते हुए उपराष्ट्रपति जी ने बताया कि उनका एक सपना था अपनी स्वयं की लाइब्रेरी बनाने का। “मैं आभारी हूँ उस बैंक मैनेजर का जिसने मुझे उस समय छह हजार रुपए की लोन दी जिससे मैं अपनी लाइब्रेरी सेट अप कर पाया,” उन्होंने कहा।
इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति जी ने युवाओं से कहा कि आप भाग्यशाली हैं कि ऐसे समय में जी रहे हैं जब भारत अभूतपूर्व प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है। “आज देश में ऐसा इकोसिस्टम तैयार किया गया है कि आपके पास सिर्फ एक आईडिया होना चाहिए, आपको वित्त और मार्गदर्शन की कमी नहीं रहेगी,” उन्होंने कहा और युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने आईडिया को अपने दिमाग में न रखें बल्कि उसे हकीकत में उतारने की हर संभव कोशिश करें।
छात्रों को अति-प्रतिस्पर्धा में न पड़ने की सलाह देते हुए उपराष्ट्रपति जी ने उनसे अपना अनुभव साझा करते हुए कहा, “मैं हमेशा क्लास में फर्स्ट आता था और हमेशा डरा रहता था कि फर्स्ट न आया तो क्या होगा। उस डर के कारण मैंने बहुत कुछ खोया… मैं अधिक दोस्त बना पाता, अधिक हॉबी कर पाता।”
युवाओं से निडर होकर आगे बढ़ने की अपील करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि “असफलता के डर से डरिये मत! डर सबसे बड़ी बीमारी है जो मानवता के लिये हानिकर है।”
उपराष्ट्रपति जी ने भारत द्वारा नित रचे जा रहे कीर्तिमानों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। आज हम अपने औपनिवेशिक शासकों को पीछे छोड़ पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। उन्होंने छात्रों से आह्वान किया “आप 2047 के सिपाही हैं, आप हर प्रयास करें ताकि भारत आजादी की शताब्दी मनाते समय विश्व में शिखर पर पहुंचे।”
कानून को सर्वोपरि रखने पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति जी ने कहा कि कुछ लोग समझते हैं कि वे कानून से ऊपर हैं और जब कानून का शिकंजा उन पर कसता है तो वे सड़कों पर विरोध प्रदर्शन का रास्ता अपनाते हैं। श्री धनखड़ ने यह भी कहा किसी को भी राष्ट्र और हमारे संस्थाओं की छवि धूमिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें “हमेशा ऐसा काम करना चाहिए जिससे देश का नाम ऊपर हो। हर हालत में हमें देश को सर्वोपरि रखना होगा।”
सैनिक स्कूलों में लड़कियों के एडमिशन को एक सकारात्मक और अच्छी शुरुआत बताते हुए उपराष्ट्रपति जी ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि आने वाले समय में इसके बहुत अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। “यहाँ उपस्थित सभी बेटियों को मैं हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ,” उन्होंने कहा।
उपराष्ट्रपति जी के अभिभाषण का लिंक:
https://pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=1951040