
अगर वाकई कहीं स्वर्ग है, और अगर वाकई आदमी स्वर्ग में जा सकता होगा, तो यकीनन वहाँ भी अपराधियों का डेरा होगा। और ठीक यही तो हुआ है। इंटरनेट यानी साइबर संसार जैसी खूबसूरत, स्वर्णिम जगह में भी अपराधियों ने न केवल अपने अड्डे बना लिए हैं, बल्कि अपराध करने के ऐसे तौर-तरीके ईजाद कर लिए हैं कि वे अब ऐसे पूरे सफेदपोश डॉन बन चुके हैं जिन्हें ढूंढ निकालना और पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। इंटरनेट की कुछ खास, उन्नत तकनीकों, जिन्हें किसी दूसरे अच्छे-भले प्रयोजनों के लिए सृजित किया गया है, ने भी अपराधियों को अनाम बने रहकर बेखौफ अपने अपराधों जिनमें से अधिकांश रुपए पैसों की हेराफेरी और अमानत में खयानत के होते हैं को अंजाम देने में भरपूर सहायता की है। इंटरनेट के शुरूआती दिनों से ही इसकी खूबसूरत तकनीक का और उनकी खामियों का इस्तेमाल इन्फॉर्मेशन तकनॉलॉज़ी से जुड़े और उसमें डूबे सफेदपोश अपराधी करते रहे हैं जिन्हें आम बोलचाल की भाषा में हैकर कहा जाता है। नब्बे के दशक में कम्प्यूटर-इंटरनेट उपयोगकर्ता ‘आईलवयू’ जैसे कम्प्यूटर वायरसों से परेशान रहते थे जिन्हें हैकर अपने मौज-मजे के लिए जारी करते थे और वे बिना किसी खास लक्ष्य के रास्ते में आ रहे चाहे जिस किसी कम्प्यूटर व नेटवर्क को संक्रमित करते थे और लाखों करोड़ों मासूम उपयोगकर्ताओं को परेशान करते थे। तब से साइबर क्राइम की दुनिया में बहुत से • अंधड़ आ कर जा चुके हैं और अब कम्प्यूटरों, कम्प्यूटर उपयोगकर्ताओं और एंटीवायरस प्रोग्रामों के होशियार हो जाने से, नित्य अपडेट होते रहने से लाखों लोगों को एक साथ, कम्प्यूटर वायरस से संक्रमित करना संभव नहीं रह गया है। इसलिए अब हैकर लक्षित हमला कर रहे हैं। आमतौर पर इनके निशानों पर बड़ी बड़ी कंपनियाँ और बैंक होते हैं। फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक, सन् 2013 से 15 के दौरान साइबर क्राइम से संस्थाओं को होने वाला नुकसान चार गुना हो चुका है और अनुमान है कि 2015 से 2019 के दौरान यह नुकसान और चार गुना बढ़कर 140 लाख करोड़ रुपया (2 ट्रिलियन डॉलर) से अधिक हो जाएगा।
सवाल यह है कि क्या हम आप जैसे एक आम कम्प्यूटर, इंटरनेट उपयोगकर्ता को साइबरक्राइम से कोई खतरा हो सकता है? तो इसका जवाब है हाँ। मगर, यहाँ मामला सड़कों पर चलने जैसा ही है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। यदि आप ट्रैफिक में दाएँ-बाएँ ध्यान नहीं रखेंगे तो चपेट में आने के पूरे चाँस हैं। और आप दुर्घटना के डर से सड़कों पर चलना बंद नहीं करते! इसलिए, भरपूर सावधानी रखें, सुरक्षित बने रहें। अगर आप सावधान रहेंगे, लालच में न पड़ेंगे तो कोई भी जी हाँ, कोई भी हैकर कितना ही सोफिस्टिकेटेड टूल ले आए, आपका बाल बांका नहीं कर सकता। दरअसल, हैकरों को मानवीय कमजोरी उसकी असावधानी, उसका आलस, उसके लालच में फंसने आदि का पता होता है और आमतौर पर वो इसी का फायदा उठाते हैं।
हाल ही में भोपाल के स्थानीय समाचार पत्रों में एक खबर छपी। दिलीप बिल्डकॉन नामक एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के कम्प्यूटर पर हैकर ने कब्जा कर लिया और कम्प्यूटर के तमाम डाटा को एनक्रिप्ट (कूट रचित) कर दिया जिससे कि उनका सारा बिजनेसठप्प पड़ गया। हैकर ने डाटा को वापस काम लायक बनाने यानी डीक्रिप्ट करने के लिए लाखों रूपए की फिरौती मांगी। जाने कैसे यह खबर अखबारों में आ गई, मगर आमतौर पर कंपनियाँ अपनी साख की खातिर ऐसी खबरों को अंदर दबा देती हैं और बाहर आने नहीं देतीं। अर्थ साफ है। साइबर संसार में कम्प्यूटरों-सर्वरों के डेटा अपहरण और फिरौती का अपराध जिसे रैंसमवेयर किस्म के क्रिप्टोवायरसों से अंजाम दिया जाता है और जिसे स्पीयर फिशिंग कहा जाता है, महामारी का रूप ले चुका है। कुछेक वर्ष पहले, लोग नाइजीरियन फिशिंग स्कैम के झांसे में आ जाते थे, परंतु अब चहुँओर जागरूकता बढ़ने से इसमें खासी कमी आई है। और, अभी दौर स्पीयर फिशिंग में फँसाने-फँसने का चल रहा है, जो महामारी का रूप ले चुका है।
क्रिप्टोवायरस एक्टिव होकर नेटवर्क से जुड़े तमाम कम्प्यूटरों के डेटा को मिलिट्री – ग्रेड- एनक्रिप्शन से एनक्रिप्टकर देता है और एक कुंजी बनाता है और उसे दूरस्थ एक गुप्त इंटरनेट सर्वर पर अपलोड कर देता है। हैकर अब इस क्रिप्टोवायरस प्रोग्राम के जरिए कम्प्यूटर के डेटा को वापस सही करने यानी डीक्रिप्टकरने के लिए अति आवश्यक उस विशिष्टकुँजी को देने के बदले फिरौती माँगते हैं। यदि हैकरों ने लक्षित अटैक किया है तो उसे आपकी हैसियत पहले से ही पता होती है तो वो उस हिसाब से पैसा माँगता है, और यदि रेंडम अटैक करते हैं अकसर वे बेहद वाजिब सी फिरौती भी माँगते हैं केवल 1 या 2 बिटक्वाइन ।
महामारी की नजदीकी पड़ताल
स्पीयर फिशिंग इंटरनेट के जरिए अंजाम दिए जा रहे सैकड़ों विविध किस्म के अपराधों में से एक है। हैकर कई स्रोतों से जुटाए गए, विशिष्ट लक्षित अथवा बेतरतीब सैकड़ों हजारों ईमेल पतों पर, फेसबुक स्टेटस पर कमेंट आदि के जरिए अथवा ऐसे ही अन्य जरियों से, विविध किस्म के आकर्षक प्रस्तावों और लालच भरे ई-मेल संदेश भेजते हैं, और साथ में होता है रेसमवेयर क्रिप्टोवायरस संलग्नक अथवा क्रिप्टोवायरस की कड़ी। रेंसमवेयर एक ऐसा वायरस किस्म होता है जो लक्षित कम्प्यूटर पर चलता है तो उसे बंधक बना लेता है यानी उसका कामधाम बंद कर देता है और हैकर के निर्देश पर ही छोड़ता है। अब जिनके पास ये ईमेल पहुँचते हैं वे अगर सावधानी न रखें, या जाने-अनजाने लालच में फंस कर वायरस संलग्नक फाइल को खोल लें या दिए गए लिंक को खोल लें, तो उनका कम्प्यूटर चाहे वो व्यक्तिगत हो या कंपनी के सर्वर से जुड़ा हैक हो जाता है और नतीजतन उस कम्प्यूटर से जुड़े नेटवर्क के व्यक्तिगत या कंपनी के सारे कम्प्यूटर भी हैक हो जाते हैं। अब हैकर अपनी हरकतों को अंजाम दे देते हैं। क्रिप्टोवायरस एक्टिव होकर नेटवर्क से जुड़े तमाम कम्प्यूटरों के डेटा को मिलिट्री-ग्रेड-एनक्रिप्शन से एनक्रिप्ट कर देता है और एक जी बनाता है और उसे दूरस्थ एक गुप्त इंटरनेट सर्वर पर अपलोड कर देता है। हैकर अब इस क्रिप्टोवायरस प्रोग्राम के जरिए कम्प्यूटर के डेटा को वापस सही करने यानी डीक्रिप्ट करने के लिए अति आवश्यक उस विशिष्ट कुंजी को देने के बदले फिरौती
मांगते हैं। यदि हैकरों ने लक्षित अटैक किया है तो उसे आपकी हैसियत पहले से ही पता होती है तो वो उस हिसाब से पैसा माँगता है, और यदि रेंडम अटैक करते हैं अकसर वे बेहद वाजिब सी फिरौती भी माँगते हैं केवल एक या दो बिटक्वाइन। बिटक्वाइन, साइबर क्राइम जगत की पसंदीदा डिजिटल क्रिप्टो करेंसी है।
इंटरनेट पर लेन-देन को पूरी तरह सुरक्षित, गुप्त और अनामी रूप से रह कर करने हेतु ही इस करेंसी को डिजाइन किया गया है। बिटक्वाइन का कोई भौतिक रूपाकार नहीं होता इसलिए इसे डिजिटल करेंसी भी कहते हैं। बस इसके लंबे-चौड़े कोड होते हैं, जिसे खास सॉफ्टवेयरों के जरिए, अत्यंत जटिल कम्प्यूटर प्रोग्रामों द्वारा सृजित किया जाता है। बिटक्वाइन करेंसी की कीमत माँग और सप्लाई के आधार पर नित्यप्रति निर्धारित होती है। बिटक्वाइन करेंसी पर किसी का अधिकार नहीं होता है। एक बार साइबर संसार में आ जाने के बाद जिस किसी के पास भी जितनी बिटक्वाइन होती है, वो उसका मालिक होता है। संक्षेप में यह समझ लें कि यदि आप बिटक्वाइन के मालिक तो इसके जरिए किए गए इंटरनेटी व्यापार खरीदी-बिक्री – भुगतान का पता किसी को नहीं चल सकता। इसीलिए, हैकर आमतौर पर बिटक्वाइन से भुगतान माँगते हैं ताकि उन तक पहुँचना किसी सूरत संभव न हो। हाँ, आप बिटक्वाइन को इंटरनेट पर बिटक्वाइन एक्सचेंजों से, और अब तो कई देशों में एटीएम आदि के जरिए, रुपयों और डालरों से खरीद सकते हैं। वर्तमान में एक बिटक्वाइन की कीमत 580 यूएस डॉलर है। अब चूंकि हैकरों की मांग बिटक्वाइन से भुगतान की होती है तो शिकार पहले अपने कठिन परिश्रम से की गई कमाई से बिटक्वाइन एक्सचेंज से बिटक्वाइन खरीदता है और फिर हैकर को भुगतान करता है। वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि जिस क्रिप्टो तकनीक, ब्लॉकचेन यानी सार्वजनिक लेजर पर बिटक्वाइन आधारित है, उसी फुलप्रूफ तकनीक पर ही भविष्य की मुद्रा भी आधारित होगी।
हैकर पूरे विश्व को अपना शिकार मानते हैं। पूरी तरह अंतर्राष्ट्रीय । इसीलिए वे विश्व के विविध क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषाओं में संवाद करते हैं। आमतौर पर इसके लिए वे स्वचालित गूगल अनुवादक औजार का उपयोग करते हैं। उनके रैंसमवेयर कई कई भाषाओं में संवाद करने में सक्षम होते हैं। इन रेंसमवेयर मेंबटक्वाइन कैसे खरीदें, कैसे भुगतान करें आदि-आदि विवरण विस्तृत और आसान भाषा में होते हैं और संपर्क सूत्र भी होते जिनके जरिए उनसे संपर्क किया जा सके। अलबत्ता ये सूत्र टॉरब्राउज़र और वीपीएन वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्किंग के जरिए होते हैं जिससे हैकर को ट्रेस करना आसान नहीं होता। भुगतान की समय सीमा को लेकर हैकर कोई कड़ाई नहीं बरतते और आमतौर पर एक-दो दिन की मोहलत आसानी से मिल जाती है। कई बार रैंसमवेयर के जरिए माँगी गई फिरौती की रकम सौदेबाजी भी होती है और हैकर आमतौर पर 20-30 प्रतिशत छूट दे देते हैं। आमतौर पर भुगतान हो जाने के बाद आपका नक्रिप्टेडडेटा वापस सही भी हो जाता है। कुछ अरसा पहले, किसी हैकर की अंतरात्मा शायद जाग उठी थी और उसने अपने भी शिकारों के लिए एक मास्टर – कुंजी मुफ़्त में जारी कर दिया था और अपने कर्मों के लिए माफी भी माँग ली थी। एंटीवायरस कंपनी एफुसिक्योर के मुताबिक, कई मामलों में कंपनियाँ हैकरों को भुगतान कर प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के
कम्प्यूटर सिस्टम के डेटा खराब तो करवा ही रही हैं, कई देशों की सरकारें या सरकारी एजेंसी जिनमें चीन, इम्नाइल और मरीका भी शामिल हैं, विरोधी देशों के विशिष्ट लक्षित प्रतिष्ठानों के विरुद्ध ऐसे लक्षित हमले करवा रही हैं। स्टक्सनेट नामक हद उन्नत वायरस को विवादित रूप से कहा जाता रहा है कि इसे संयुक्त रूप से इजराइल और अमरीकी सरकारी Agencies
ने ईरान के परमाणविक प्रतिष्ठानों को बेकार करने के लिए बनवाया था और वे इसमें सफल भी रहे थे!
किसी ने कहीं कहा भी है अगला विश्वयुद्ध इंटरनेट पर साइबर संसार में लड़ा जाएगा। युद्ध में जीत के लिए, क्या आप तैयार हैं?
इंटरनेट, मानव के मूलभूत अधिकारों में शामिल किया जाने लगा है। कुछेक देशों ने इसे पहले ही शामिल कर लिया है, और निःसंदेह तमाम बाकी देश भी इस ओर अग्रसर हैं ही। भारत में भी गाँव-गाँव में इंटरनेट पहुँच रहा है और वो डिजिटल इंडिया बनने के कगार पर है। ऐसी स्थिति में, किसी भी सूरत में साइबर संसार से दूरी बनाई रखी नहीं जा सकती। और, अब तो इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स के जमाने में, जब आपके इर्द-गिर्द हर उपकरण अपरिहार्य रूप से इंटरनेट से जुड़ा होगा, तब मानव-जीवन की कल्पना इंटरनेट के बगैर नहीं की जा सकेगी। अब सवाल यह है कि ऐसे में, हर संभावित क्लिक पर खतरा मंडरा रहे साइबर संसार में सुरक्षित कैसे बने रहें और साइबर क्राइम से कैसे बचें? यदि आप चंद सुरक्षा बातों का पालन करते रहें, तो हमेशा बचे रहेंगे। इस बात को दशकों से, बारंबार बताया जाता रहा है, परंतु अज्ञानता, भूलवश, असावधानी और, सबसे बड़ी बात मानवीय कमजोरी ‘हमारा लालच’ हमें साइबरक्राइम के खतरनाक पंजों में झोंक देता है।
साइबर संसार में सुरक्षित बने रहने के लिए आसान बातें
सुरक्षित बने रहने का माइंडसेट सदैव बनाए रखें साइबर अपराधी तभी सफल होते हैं जब आपकी अपनी तैयारी पूरी नहीं रहती है। कार्यस्थल पर और महत्वपूर्ण डेटा वाले कम्प्यूटरों, सर्वरों पर इंटरनेट पहुँच बेहद सीमित, आवश्यक रखें सोशल मीडिया जैसे कि फेसबुक ट्विटर आदि एक्सेस ऐसे टर्मिनलों से पूरी तरह बंद रखें।
साइबर अपराधियों को पटखनी देने के लिए बैकअप से बड़ा कोई हथियार नहीं नित्य, नियमित अंतराल पर बैकअप करें। सुरक्षित और सदा तैयार बैकअपप्लान बना कर चालू रखें। बैकअप काम कर रहा है या नहीं यदा कदा चेक करते रहें ।
कम्प्यूटर सॉफ़्टवेयर नियमित अपडेट करते रहें । हैकर आमतौर पर सॉफ़्टवेयर की जीरो डे खामियों का ही लाभ लेते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है जितना अद्यतन
आपका सॉफ्टवेयर होगा, उसमें हैकिंग की जा सकने । वाली खामियाँ कम से कम होंगी, और आप रहेंगे अधिक से अधिक सुरक्षित। इसीलिए, आपने यदा कदा समाचारों में पढ़ा भी होगा किसी अत्यधिक संभावना युक्त खामी को दूर करने के लिए सॉफ्टवेयर कंपनियाँ आपात्कालीन अपडेट पैच भी जारी करती हैं।
सबसे बड़ी बात ईमेल अटैचमेंट/ इंटरनेट की कड़ियों को सोच-समझ कर ही खोलें। किसी भी जी हाँ, किसी भी अपरिचित व्यक्ति से प्राप्त ईमेल संलग्नक / ईमेल कड़ी को न खोलें। आपको मिले ई-मेल संलग्नक के प्रेषक की पुष्टि कर लें।
विविध सुरक्षा साधनों, मानकों व सर्टिफिकेशन जैसे कि एंटीवायरस, फायरवाल, वीपीएन, हार्ड डिस्क व डेटा एनक्रिप्शन आदि का प्रयोग करें।
जीमेल, फेसबुक आदि के लिए पासवर्ड कठिन रखें, नियमित समय पर बदलते रहें और टू-फैक्टर प्रमाणीकरण उपयोग अवश्य करें। जी-मेल, फेसबुक आदि में अपना मोबाइल फोन नंबर जोड़ें और अनधित लॉगिन और ऐक्सेस को दूर करने के लिए फोन पर वनटाइम ओटीपी पाने का विकल्प जोड़ें। ये उपाय कोई आतंकित तो नहीं करते? आसान हैं ना? फिर क्यों होते हैं साइबर क्राइम से आतंकित ?
हैकरों की भाषा
साइबर युद्ध के प्रायोजकों और लाभार्थियों! ध्यान से सुनो! अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए, साइबर हथियारों के लिए तुमने कितने खर्च किए? हमने स्टक्सनेट, डूक्यू, फ्लेम (ये सभी उच्चकोटि के वायरस हैं जो अत्यधिक समय व संसाधनों के जरिए तैयार करवाए गए हैं किसी सरकारी सहयोग के बिना असंभव है) बनाने वाले इक्वेशन ग्रुप को हैक कर लिया है। हमने इक्वेशन ग्रुप के दर्जनों साइबर हथियारों ढूँढ निकाल कर कॉपी कर लिया है। हम तुम्हें कुछ फाइलें फोकट में वापस दे रहे हैं ताकि देख सको कि हमने क्या किया है। सबूत सही हैं ना? तुमने बहुतों को बर्बाद किया। बहुतों के यहाँ सेंध मारी। बड़ी-बड़ी बातें कीं। पर अब हमारी बारी है। हम काम की बाकी फाइलों की नीलामी कर रहे हैं।
किस्म-किस्म के साइबर क्राइम
अपराध, अपराध होता है। फिर भी हम अपनी सुविधा के लिए उसके तौर तरीकों के आधार पर कुछ नाम दे देते हैं। कुछ प्रमुख साइबर अपराध है
• साइबर स्टाकिंग इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से व्यक्ति अथवा संगठन को विविध तरीकों से परेशान करना, सताना।
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परिचय चोरी इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दूसरों की व्यक्तिगत जानकारियों की चोरी कर उसका उपयोग अपने लाभ के लिए करना।
डिकिंग इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दूसरों के कंप्यूटर पर अनधित कार्य करना व हैक सिस्टम से जानकारी चुराकर उन्हें लाभ की खातिर बेचना ।
बैंकिंग चोरी बैंकों व वित्तीय संस्थाओं के सिस्टम में इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सेंध लगाकर उनके इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर सिस्टम के जरिए फंड की हेराफेरी व चोरी करना।
रैंसमवेयर इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कम्प्यूटरों के बहुमूल्य डेटा पर कब्जा कर एवज में फिरौती वसूल करना।
डीडीओएस अटैक किसी ऑनलाइन इंटरनेट सेवा को अत्यधिक ट्रैफिकबॉट से बम्बार्डिंग कर उसका प्रचालन बाधित करना।
स्पैम, फिशिंग और स्पीयर फिशिंग साइबर जगत में बहुतायत किए जाने वाले अपराध। स्पैम यानी अवांछित ईमेल संदेश भेजना, फिशिंग यानी ई-मेल के जरिए लोगों को लालच देकर फांसना और स्पीयर फिशिंग यानी
लक्षित हमला कर विशिष्ट उद्देश्यों के लिए फांसना ।
ड्राइव – बाई- डाउनलोड मालवेयर वायरस युक्त ऐसी साइटें बनाना जिसमें केवल भ्रमण मात्र से कम्प्यूटर पर स्वचालित मालवेयर डाउनलोड हो जाए और उसे संक्रमित कर दे।
रिमोट एडमिनिस्ट्रेशन टूल इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के जरिए दूसरों के कम्प्यूटर पर कब्जा जमा कर उससे गैरकानूनी गतिविधियाँ करना ।
डार्कवेब अपराध डार्कवेब (गुप्त वेबसाइटों) के जरिए ड्रग, आर्म व अवैध वस्तुओं की तस्करी व भुगतान आदि की व्यवस्था करना। साइबर युद्ध और साइबर आतंकवाद शत्रु देशों के विविध शासकीय उपक्रमों के वेवसाइटों पर प्रत्यक्ष, परोक्ष, गुप्त हमला कर बंद करना, जानकारियाँ चुराना आदि ।
ऑनलाइन जुआ, चाइल्ड पोर्नोग्राफी ।
कार्डिंगक्रेडिट/डेबिट कार्डों की जानकारियाँ चुराकर उन्हें बेचना।
साइबर क्राइम फिशिंग में फाँसने के तरीके फिशिंग चारा डाल कर लोगों को फाँसना। साइबर जगत में यह अपराध आम है। तमाम जगहों से चेतावनी संदेशों, बारंबार तमाम माध्यमों से बताए जा रहे सावधान रहने की सूचनाओं के बावजूद लोगों के फँसने फाँसने का सिलसिला थोड़ा कम भले हुआ हो, मगर बदस्तूर जारी है।
ये हैं फिशिंग के कुछ आम प्रचलित तौर तरीके। फिशर्स और स्कैमर्स आपको पास ईमेल, मोबाइल फोन, फेसबुक – ट्विटर स्टेटस – कमेंट आदि के माध्यम से पहुँचते हैं और आपको लालच देकर कुछ ऐसे फंसाते हैं
धन का लालच लाखों रुपयों का पार्सल, इनकम टैक्स रिफंड, इंस्योरेंश पॉलिसी बोनस, लॉटरी, किसी अमीर, वारिस विहीन व्यक्ति के जायदाद को ठिकाने लगाने में सहयोग के एवज में कमीशन, आदि-आदि का लालच दिया जाता है, जिसकी प्रोसेसिंग फीस या अन्य खर्चों के लिए आपको कुछ हजार या लाख रुपए उनके खाते में पहले ही जमा कराने होते हैं। ध्यान दीजिए, फोकट में कोई किसी को एक धेला भी नहीं देता ये सब फांसने की तरकीबें होती हैं।
भय दिखाकर फांसना आपके क्रेडिट कार्ड, बैंक खाता, ई-मेल खाता आदि के अवैध गतिविधि, अन्य तकनीकीसमस्या आदि बता कर उनके ब्लॉक हो जाने की समस्या हो जाने का का डर बता कर नकली वेबसाइट का लिंक दिया जाता है जिसमें लॉगिन करने पर समस्या दूर आश्वासन दिया जाता है। याद रखिए, नकली वेबसाइटों में लॉगिन किया और फंसे! सभी असली और सुरक्षित साइटों में आजकल पता पट्टी के प्रारंभ में हरा रंग और ताले का चिह्न दिखता है। इसे भी जांच लें।
मानवीयता को ढाल बनाकर फाँसना कुछेक साल पहले ऐसे फिशिंग अपराध बहुत हुए थे। आपके संपर्कों की जानकारी हासिल कर उन्हें फोन / ई-मेल से संदेश भेजना कि आप किसी मुसीबत में फंस गए हैं और तत्काल रुपयों की जरूरत है, जिसे किसी बैंक खाते में ट्रांसफर करना है। बिना पुष्टि किए यदि पैसा भेजे (लोगों ने भेजे भी!) तो, जाहिर है, गए!
मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी से / ओटीपी हासिल कर फाँसना बैंकों की सुरक्षा में सेंध लगाकर या दूसरे तरीके से स्कैमर आपके बैंक में रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर को डीएक्टिवेट कर व पोर्ट कर आपके खाते की रकम गायब करते हैं। बहुधा वे बैंक अधिकारी बन कर आपके कार्ड, खाता आदि की जानकारी बता कर आपसे ओटीपी हासिल करते हैं जो आपके पंजीकृत मोबाइल पर आता है जिससे वे महँगी खरीदारी कर आपको चूना लगाते हैं। ध्यान दें जब आपके मोबाइल फोन पर ओटीपी आता है तो वहाँ स्पष्ट लिखा रहता है ओटीपी किसी को भी न बताएँ । ओटीपी तभी आता है जब आप स्वयं कुछ ऑनलाइन बैंकिंग कार्य करते हैं जैसे कि ऑनलाइन खरीदी या ऑनलाइन मोबाइल रीचार्ज ।
- यह कंटेंट “इलेक्ट्रॉनिक की आपके लिए” मासिक पत्रिका से लिया गया है…
