संसद के विशेष सत्र में प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

माननीय अध्‍यक्ष जी, देश की 75 वर्षों की संसदीय यात्रा, उसका एक बार पुन: स्‍मरण करने के लिए और नए सदन में जाने से पहले उन प्रेरक पलों को इतिहास की महत्‍वपूर्ण घड़ी को स्‍मरण करते हुए आगे बढ़ने का ये अवसर, हम सब इस ऐतिहासिक भवन से विदा ले रहे हैं। आजादी के पहले ये सदन Imperial Legislative Council का स्‍थान हुआ करता था। आजादी के बाद ये संसद भवन के रूप में इसको पहचान मिली। ये सही है इस इमारत के निर्माण करने का निर्णय विदेशी सांसदों का था, लेकिन ये बात हम न कभी भूल सकते हैं और हम गर्व से कह सकते हैं, इस भवन के निर्माण में पसीना मेरे देशवासियों का लगा था, परिश्रम मेरे देशवासियों का लगा था, और पैसे भी मेरे देश के लोगों के लगे थे।

इस 75 वर्ष की हमारी यात्रा ने अनेक लोकतांत्रिक परम्पराओं और प्रक्रियाओं का उत्तम से उत्तम सृजन किया है। और इस सदन में रहते हुए सबने उसमें सक्रियता से योगदान भी दिया है और साक्षी भाव से उसको देखा भी है। हम भले ही नए भवन में जाएंगे, लेकिन पुराना भवन भी; ये भवन भी आने वाली पीढ़ियों को हमेशा-हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। ये भारत के लोकतंत्र की स्वर्णिम यात्रा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है जो सारी दुनिया को भारत की रगों में लोकतंत्र का सामर्थ्‍य कैसे है, इसका परिचित कराने का काम इस इमारत से होता रहेगा।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

अमृतकाल की प्रथम प्रभा का प्रकाश, राष्‍ट्र में एक नया विश्‍वास, नया आत्‍मविश्‍वास, नई उमंग, नए सपने, नए संकल्‍प, और राष्‍ट्र का नया सामर्थ्‍य उसे भर रहा है। चारों तरफ आज भारतवासियों की उपलब्धि की चर्चा हो रही है और गौरव के साथ हो रही है। ये हमारे 75 साल के संसदीय इतिहास का एक सामूहिक प्रयास का परिणाम है। जिसके कारण विश्‍व में आज वो गूंज सुनाई दे रही है।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

चंद्रयान-3 की सफलता न सिर्फ पूरा भारत, पूरा देश अभिभूत है। और इसमें भारत के सामर्थ्‍य का एक नया रूप, जो आधु‍निकता से जुड़ा है, जो विज्ञान से जुड़ा है, जो टेक्‍नोलॉजी से जुड़ा है, जो हमारे वैज्ञानिकों के सामर्थ्‍य से जुड़ा है, जो 140 करोड़ देशवासियों की संकल्‍प की शक्ति से जुड़ा है, वो देश और दुनिया पर एक नया प्रभाव पैदा करने वाला है। ये सदन और इस सदन के माध्‍यम से मैं फिर एक बार देश के वैज्ञानिकों और उनके साथियों को कोटि-कोटि बधाइयां देता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

ये सदन ने भूतकाल में जब NAM की समिट हुई थी, सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करके देश इस प्रयास को सराहा था। आज जी-20 की सफलता को भी आपने सर्वसम्‍मति से सराहा है। मैं मानता हूं देशवासियों का आपने गौरव बढ़ाया है, मैं आपका आभार व्‍यक्‍त करता हूं। जी-20 की सफलता 140 करोड़ देशवासियों की है। ये भारत की सफलता है, किसी व्‍यक्ति की सफलता नहीं है, किसी दल की सफलता नहीं है। भारत के फेडरल स्‍ट्रक्‍चर ने, भारत की विविधता ने 60 स्‍थानों पर 200 से अधिक समिट और उसकी मेजबानी हिन्‍दुस्‍तान के अलग-अलग रंग-रूप में, देश की अलग-अलग सरकारों में बड़े आन-बान-शान से की और ये प्रभाव पूरे विश्‍वभर के मंच पर पड़ा हुआ है। ये हम सबके सेलिब्रेट करने वाला विषय है। देश के गौरव-गान को बढ़ाने वाला है। और जैसा आपने उल्‍लेख किया, भारत इस बात के लिए गर्व करेगा, जब भारत अध्‍यक्ष रहा, उस समय अफ्रीकन यूनियन इसका सदस्‍य बना। मैं उस इमोशनल पल को भूल नहीं सकता हूं, जब अफ्रीकन यूनियन की घोषणा हुई, और अफ्रीकन यूनियन के प्रेसिडेंट उन्‍होंने कहा कि मेरे जीवन में ऐसे पल थे कि शायद मैं बोलते-बोलते रो पडूंगा। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि कितनी बड़ी आंकांक्षा और आशाएं पूरी करने का काम भारत के भाग्‍य में आया।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

भारत के प्रति शक करने का एक स्‍वभाव कई लोगों का बना हुआ है और जब आजादी मिली तब से चल रहा है। इस बार भी यही था। कोई declaration नहीं होगा, असंभव है। लेकिन ये भारत की ताकत है, वह भी हुआ और विश्‍व सर्वसम्मति से एक साझा घोषणापत्र ले करके आगे को रोडमैप ले करके यहां से प्रांरभ हुआ है।

और अध्‍यक्ष जी,

आपके नेतृत्व में क्योंकि भारत की अध्‍यक्षता नवंबर के आखिरी दिन तक है, इसलिए अभी हमारे पास जो समय है, उसका उपयोग हम करने वाले हैं, और आपकी अध्‍यक्षता में दुनियाभर के ये जो जी-20 के सदस्‍य हैं, पी-20  पार्लियामेंट के स्‍पीकर्स की एक समिट की जैसे आपने घोषणा की, सरकार का आपके इन प्रयासों को पूरा समर्थन रहेगा, पूरा सहयोग रहेगा।

आदरणीय अध्‍यक्ष जी,

हम सबके लिए गर्व की बात है, आज भारत विश्‍वमित्र के रूप में अपनी जगह बना पाया है। पूरा विश्‍व भारत में अपना मित्र खोज रहा है, पूरा विश्‍व भारत की मित्रता को अनुभव कर रहा है। और उसका मूल कारण है हमारे जो संस्‍कार हैं, वेद से विवेकानंद तक जो हमने पाया है, ‘सबका साथ, सबका विकास’ का मंत्र आज विश्‍व को हमें साथ लाने में जोड़ रहा है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

ये सदन से बिदाई लेना, बहुत ही भावुक पल है परिवार भी अगर पुराना घर छोड़कर के नए घर जाता है तो बहुत सारी यादें कुछ पल के लिए उसको झंझोड़ देती हैं और हम जब ये सदन को छोड़कर जा रहे हैं तो हमारा मन-मस्तिष्क भी उन भावनाओं से भरा हुआ है, अनेक यादों से भरा हुआ है। खट्टे-मीठे अनुभव भी रहे हैं, नोक-झोंक भी रही है, कभी संघर्ष का माहौल भी रहा है तो कभी इसी सदन में उत्सव और उमंग का माहौल भी रहा है। ये सारी स्मृतियां हमारे साथ हम सबकी साझी स्मृतियां हैं, ये हम सबकी सांझी विरासत है और इसलिए इसका गौरव भी हम सबका सांझा है। आजाद भारत के नवनिर्माण से जुड़ी हुई अनेक घटनाएं इन 75 वर्षो में यहीं सदन में आकार लेती हुई हमने देखी हैं। आज हम जब इस सदन को छोड़कर के नए सदन की ओर प्रस्थान करने वाले है तब भारत के सामान्य मानवी की भावनाओं को जहां जो आदर मिला है, सम्मान मिला है उसकी अभिव्यक्ति का भी ये अवसर है।

और इसलिए आदरणीय अध्यक्ष जी,

मैं पहली बार जब संसद का सदस्य बना और पहली बार एक सांसद के रूप में इस भवन में मैंने प्रवेश किया तो सहज रूप से मैंने इस संसद भवन के द्वार पर अपना शीश झुकाकर के इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन करते हुए मैंने पैर रखा था। वो पल मेरे लिए भावनाओं से भरी हुई थी, मैं कल्पना नहीं कर सकता था लेकिन भारत के लोकतंत्र की ताकत है, भारत के सामान्य मानवी की लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा का प्रतिबिंब है कि रेलवे प्लेटफार्म पर गुजारा करने वाला एक गरीब परिवार का बच्चा पार्लियामेंट पहुंच गया। मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी कि देश मुझे इतना सम्मान देगा, इतना आशीर्वाद देगा, इतना प्यार देगा सोचा नहीं था अध्यक्ष जी।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हम में से बहुत लोग है जो संसद भवन के अंदर जो चीजें लिखी गई हैं उसको पढ़ते भी रहते हैं कभी-कभी उसका उल्लख भी करते है। हमारे यहां संसद भवन के प्रवेश द्वार पर एक चांगदेव के उपदेश का एक वाक्य है लोकद्वारम करके पूरा वाक्य है i उसका मतलब ये होता है कि जनता के लिए दरवाजे खोलिए और देखिए कि कैसे वो अपने अधिकारों को प्राप्त करती है, हमारे ऋषि-मुनियों ये लिखा हुआ है, हमारे प्रवेश द्वार पर लिखा हुआ है। हम सब और हमारे पहले जो यहां रहे हैं वो भी इस सत्यता के साक्षी है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

समय रहते जैसे-जैसे वक्त बदलता गया ये हमारे सदन की संरचना भी निरंतर बदलती रही है और अधिक समावेशी बनती गई है। समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधि विविधताओं से भरा हुआ इस सदन में नजर आता है, अनेक भाषाएं हैं, अनेक बोलियां हैं, अनेक खानपान हैं, सदन के अंदर सब कुछ है और समाज के सभी तबके के लोग चाहे वो सामाजिक रचना के हो, चाहे आर्थिक रचना के हो, चाहे गांव या शहर के हो एक प्रकार से पूर्णरूप से समावेशी वातावरण सदन में पूरी ताकत के साथ जनसामान्य की इच्छा, आकाक्षाओं को प्रकट करता रहा है। दलित हो, पीड़ित हो, आदिवासी हो, पिछड़े हो, महिलाएं हो हर ने हर एक का धीरे-धीरे-धीरे योगदान बढ़ता चला गया है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

प्रारंभ में महिलाओं की संख्या कम थी लेकिन धीरे-धीरे माताओं–बहनों ने भी इस सदन की गरिमा को बढ़ाया है, इस सदन के गरिमा में बहुत बड़ा बदलाव लाने में उनका योगदान रहा है।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

प्रारंभ से अब तक एक मोटा-मोटा हिसाब लगाता था करीब-करीब साढ़े सात हजार से अधिक जनप्रतिनिधि दोनों सदनों में मिलाकर के योगदान दे चुके हैं इतने सालों में साढ़े सात हजार से करीब-करीब ज्यादा। इस कालखंड में करीब 600 महिला सांसदों ने भी इस सदन की गरिमा को बढ़ाया है दोनों सदनों में।

और आदरणीय अध्यक्ष जी,

अब जानते है कि सदन में आदरणीय इंद्रजीत गुप्ता जी 43 ईयर अगर मेरी गलती नहीं हो तो 43 ईयर, इस सदन में लंबा समय बैठकर के इस सदन के साक्षी बनने का उनको सौभाग्य मिला। और यही सदन है आदरणीय अध्यक्ष जी जहां शतीगुर रहमान जी 93 की ऐज में भी सदन में अपना योगदान देते रहे जबकि उनकी उम्र 93 थी। और आदरणीय अध्यक्ष जी, ये भारत के लोकतंत्र की ताकत है कि 25 साल की उम्र की चंद्रमणी मुर्मू इस सदन की सदस्य बनी थी, सिर्फ 25 साल की उर्म की, सबसे छोटी उम्र की सदस्य बनी थी।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

वाद, विवाद, कटाक्ष ये सबकुछ हम सबने अनुभव किया है हम सबने initiate भी किया है कोई बाकी नहीं है। लेकिन उसके बावजूद भी शायद जो परिवार भाव हम लोगों के बीच में रहा है, हमारे पहले की पीढ़ियों में भी रहा है, जो लोग प्रचार माध्यमों से हमारे यहां का रूप देखते है और बाहर निकलते ही हमारा जो अपनापन होता है, परिवार भाव होता है वो एक अलग ही ऊंचाई पर ले जाता है ये भी इस सदन की ताकत है। एक परिवार भाव और उसके साथ-साथ हम कभी कड़वाहट पाल के नहीं जाते, हम उसी प्यार से सदन छोड़ने के कई वर्षों के बाद भी मिल जाए तो भी उस प्यार को कभी भूलते नहीं है, उस स्नेह भरे दिनों को भूलते नहीं हैं, वो मैं अनुभव कर सकता हूं।

आदरणीय अध्यक्ष जी,

हमारे पहले भी और वर्तमान भी हमने कई बार देखा है कि अनेक संकटों के बावजूद भी, अनेक असुविधाओं के बावजूद भी सांसद सदन में आए है और उन्होंने शारीरिक पीड़ा भी सही हो तो भी सदन में एक सांसद के रूप में, जनप्रतिनिधि के रूप में अपना कर्तव्य निभाया है, ऐसी अनेक घटनाएं आज हमारे सामने हैं।गंभीर-गंभीर बीमारियों के बावजूद भी कोई व्हीलचेयर में आना पड़ा, किसी को डॉक्टरों को बाहर खड़ा रखकर के अंदर आना पड़ा लेकिन सभी सांसदों ने कभी न कभी इस प्रकार से अपनी भूमिका निभाई है।

कोरोना काल हमारे सामने उदाहरण है हर परिवार में रहता था कही बाहर जाए तो मौत को बुलावा न दे दे, उसके बावजूद भी हमारे माननीय सांसद दोनों सदन में कोरोना काल के इस संकट की घड़ी में भी सदन में आए, अपना कर्तव्य निभाया। हमने राष्ट्र का काम रूकने नहीं दिया आवश्यकता पड़ी, डिस्टेंस रखना भी था और बार-बार टेस्टिंग भी करना पड़ता था। सदन में आते थे लेकिन मॉस्क पहनना पड़ता था। बैठने की रचना भी अलग-अलग की, समय भी बदले गए। हर चीज के साथ राष्ट्र का काम रूकना नहीं चाहिए इस भाव से सभी सदस्यों ने इस सदन को अपने कर्तव्य का महत्वपूर्ण अंग माना है। संसद को चलाए रखा है और मैंने देखा है कि सदन से इतना लगाव लोगों का रहता है  कि पहले कभी हम देखते थे कोई तीस साल पहले सांसद रहा होगा, कोई पैंतीस साल पहले रहा होगा लेकिन वो central hall तो जरूर आएगा। जैसे मंदिर जाने की आदत होती है वैसे ही उनको सदन में आने की आदत होती है, इस जगह का लगाव बन जाता है। एक आत्मीय भाव से जुड़ाव हो जाता है और ऐसे बहुत से पुराने लोग हैं जो आते जाते मन करता है जरा चलो एक चक्कर काटते हैं आज उनका जनप्रतिनिधि के नाते दायित्व नहीं है लेकिन भूमि के प्रति उनका लगाव हो जाता है, ये सामर्थ्य हो जाता है इस सदन का।

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

Leave a Reply