धार्मिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता बिहार

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन धार्मिक स्वतंत्रता का हनन बिहार की शिक्षा व्यवस्था में देखी जा सकती है। बिहार सरकार ने शिक्षा की नई अवकाश तालिका में प्रमुख त्योहारों की छुट्टी रद्द कर दी है जो हिन्दू शिक्षकों के लिए निराशाजनक है । जन्माष्टमी का त्योहार, छठ ,तीज जिउतिया सभी प्रमुख त्योहार की छुट्टी समाप्त कर दी गई है यह भारतीय परम्परा का हनन नहीं तो और क्या है?छठ बिहार का सबसे बड़ा त्यौहार है इसकी छुट्टी में भी कटौती की गई है यह सीधे से हिन्दू शिक्षकों की आस्था पर प्रहार है। माना की बच्चों की शिक्षा में सुधार अत्यंत आवश्यक है पर क्या यह सुधार हिन्दूओं की आस्था और विश्वास के साथ खिलवाड़ करके करना सही है??
जब शिक्षकों को सरकार‌ जातीय जनगणना में लगा कर रखी थी उस समय सरकार को होश‌ नहीं था की शिक्षक‌ विद्यालय में नहीं होंगे तो बच्चों की पढ़ाई बाधित होगी??
जनगणना, मतगणना जैसे तमाम कार्य शिक्षकों से कराएं जाते हैं उस समय क्या बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं होती??
पिछले दो दशक में बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर यदि ध्यान दिया जाए तो सरकार के रवैया ने शिक्षा को बिहार में चौपट कर दिया है
और अब गलत तरीके से शिक्षा में सुधार की मुहीम चलाई जा रही है?
बिहार में बहुत सारे सरकारी स्कूल ऐसे हैं जहां मात्र दो या तीन शिक्षक‌ है वहां बच्चों की शिक्षा कैसे हो रही है??
शिक्षकों की बहाली की गलत प्रकिया ने भी शिक्षा व्यवस्था को गर्त में डुबा दिया है।
बिहार में हजार तरह की समस्याएं शिक्षा विभाग में देखा जा सकता है लेकिन सरकार
पर्व त्यौहार की छुट्टी रद्द कर शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर रही है ?ये कहां तक तर्क संगत है
बिहार सरकार धार्मिक स्वतंत्रता का हनन तो कर ही रही है अब सरकार अभिव्यक्ति की भी स्वतंत्रता का भी हनन कर रही है?
रक्षाबंधन त्योहार का अवकाश रद्द होने पर बिहार के खगड़िया जिले के शिक्षक सुनील कुमार को राखी बांधने उनकी बहन भागलपुर से खगड़िया उनके स्कूल आयी थी, जहाँ शिक्षक सुनील कुमार द्वारा भावुक होकर सरकार के नीति का विरोध किया गया था। सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया?
शिक्षकों के द्वारा सरकार के इस कदम से घोर निराशा के साथ आक्रोश देखी जा सकती है।
शिक्षा में सुधार के नाम पर शिक्षकों के साथ अन्याय कर रही है। बिहार सरकार का तानाशाही रवैया देखकर लगता है जैसे बिहार में जंगलराज हो?
बिहार में एवं देश की राजनीति में जिस तरह से काम हो रहा है जैसे हमारा देश लोकतंत्र है नहीं तानाशाह तंत्र है??
हमारे देश को हमारे देश के लोकतंत्र को बदलाव की जरूरत है संविधान और चुनाव प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है।
तानाशाही शासन को जबतक लगाम नहीं लगाया जाएगा तब तक स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती है।नियम और क़ानून के विरुद्ध सत्ता में आसीन गलत लोग‌ गलत तरीके से करते रहेंगे और आम जनता को परेशानी होती रहेगी।

Leave a Reply