
नीमच। विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण के बाद मदभेद होने की सदियो पुरानी परम्परा है। कांग्रेस हो या भाजपा दोनो ही पार्टियो में अंतर्कलह की रित हमेशा से देखी जा रही है।फिलहाल नजर डाली जाए मनासा विधानसभा सिट पर तो पहले कांग्रेसी अपने ही प्रत्याशी के जानी दुश्मन बने नजर आ रहे थे, लेकिन समन्वय बेठने के बाद एक जाजम पर एकता और अखंडता का संदेश देते दिखाई दे रहे है। आपसी तालमेल से जहां कांग्रेसियो की बगावत पूर्णरूप से खत्म हुई है, वही से भाजपा में अंतर्कलह की शुरूआत देखी जा रही है। पूर्व ग्रह मंत्री कैलाश चावला जिन्हे भाजपा ने उम्र दराज होने के कारण पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था वे फिर से बगावत के लिए इस चुनाव में अपने समर्थको को लेकर मैदान में डटे हुवे है। अपनी ही पार्टी से बगावत करके भाजपा उम्मीदवार माधव मारू का विरोध कर रहे है।
हैरत की बात यह है कि कोरोना जैसे गंभीर समय में जनता और कार्यकर्ताओ का हाल पूछने की बजाए कैलाश चावला दुबक क्यो गए थे, दुर दुर तक ढुंडने से दिखाई नही दे रहे थे। किसी कार्यकर्ता के घर जाकर उनका हाल पूछना तो दूर हॉस्पिटल में भर्ति मरीजो तक की सुध लेने से परहेज कर रहे थे। जनता तड़प तड़प कर दम तोड़ रही थी, उस समय चावला अपने सैफ ज़ोन में खुद को संभाले हुवे थे। लेकिन वक्त गुजरते ही जैसे ही चुनावी मौसम आया कैलाश चावला अपनी उम्र की फिक्र छोड सक्रिय होकर चुनावी मैदान में विरोध करने पर उतर आए है।
बता दे कि कोरोना जैसी भिषण महामारी में जहां एक आम जनता को किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष से ज्यादा कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़े रहने वाले की सबसे ज्यादा जरूरत महसुस हो रही थी उस समय माधव मारू एक ऐसा नेता थे जो पार्टी या अपने पद की महत्पूर्णता को भूल जनता के हितो का सदैव ध्यान रखने में सफल रहे थे। जिले में कोरोना काल में सबसे पहले आक्सीजन प्लांट की पहल करने वाले माधव मारू ही थे, जिन्होने इस भीषण परिस्थिति में किसी मासूम की सांस ना टूटे इसका विश्वास दिलाया था। छुआ—छुत की इस महामारी में जहां नेताओ ने अपने घर के कपाट बंद कर लिए थे वहां माधव मारू मरीजो के लिए हमदर्द बनकर तत्पर खड़े थे। मनासा की जनता को अब इन्ही ज्वलनशील मुद्दों पर चुनावी रण में बरसाती मैंढक बनकर आने वाले नेताओ से सवाल है कि कैलाश चावला जैसे नेता तब कहां गायब थे जब आम जनता कोरोना काल मे दम तोड़ रही थी। कोरोनो काल तो ठिक है, उससे पूर्व रामपुरा में बाढ़ की कहर ने जनता को झकजोर दिया था, जीवन संकट में था, चारो तरफ तबाही का आलम था। क्या तब कैलाश चावला अपने कार्यकर्ताओ की भीड़ एकत्रित करना भुल गए थे। ऐसे में सीधे और साफ शब्दो में कहा जा सकता है की कैलाश चावला महज बरसाती मेंढक की भांति अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए अपनी ही पार्टी से बगावत कर पार्टी के ही उम्मीदवार के विरूद्ध आरोपो की झड़ी लगाकर अपना हित साधने में कोई कोर कसर नही छोड़ते है और इसीलिए चावला हर 5 साल में होने वाले विधानसभा चुनाव का बेसब्री से इंतेजार कर पार्टी को ही नुकसान पहुंचाने की योजना बनाकर अनुशासन वाली भाजपा में अनुशासन की हीनता फैलाने का कार्य करते है।