समर्थ दादा गुरु 28 माह से निराहार ” एक नया इतिहास रच रहा धर्म धरा धेनु मां रेवा के संरक्षण का एक चितेरा.

 

लगभग 13 वर्षों से संचालित विराट नर्मदा मिशन के संचालक संस्थापक समर्थ गुरु पिछले लगभग 28 माह से निराहार रहकर नर्मदा यात्रा पर हैं. धर्म धरा धेनु और मां रेवा के संरक्षण के लिए उनकी इस अनूठी पहल में उनके साथ संत और भक्तों की टोली भी चल रही है, जिसका प्रत्येक पथ पर भावपूर्ण स्वागत और सहयोग आम जनता कर रही है. जहां एक और नर्मदा जल का दिन-रात उपभोग करने वाले कई बरसों से नर्मदा के आसपास की भूमि के कटाव और उस उसमें डाले जा रहे कचरे एवं नर्मदा की कई लहरों के सूखने कई स्थान पर नर्मदा जल के लगभग लुप्त हो जाने जैसी अन्य समस्याओं की अनदेखी करते जा रहे हैं और इस पर किसी का ध्यान नहीं है, वही समर्थ दादा गुरु अपनी अंतर तम चेतना के परिष्कृत स्वरूप को बरकरार रखते हुए उसी की शक्ति से धर्म, धरा, धेनु और नर्मदा के संरक्षण के जागरण के लिए अप्रतिम कार्य कर रहे हैं नर्मदा के जल को सामान्य जल ना बताते हुए उसकी आध्यात्मिक प्रामाणिकता को ना केवल साक्षी बना रहे हैं, बल्कि स्वयं के शरीर को गलाकर वह नर्मदा जल की शक्ति को प्रतिपादित करने में लगे हुए हैं,शारीरिक थकान या आहार कि आवश्यकता पूछने पर दादा गुरु, अपने आपको एक ऐसी शक्ति और चेतना से ओतप्रोत बताते हैं जिसके बल पर वह पैदल परिक्रमा कर रहे हैं और उनके चेहरे पर किसी तरह की थकावट या शिकायत का चिन्ह दिखता नहीं. समर्थ गुरु बताते हैं कि उन्हें पता था कि उनके इस कार्य पर विज्ञान अवश्य उंगली उठाएगा तो उन्होंने अपने आपको विज्ञान को सौंप दिया है पंडित श्री श्री रविशंकर की लैब और रामदेव बाबा की लैब में उनका परीक्षण किया जा चुका है “नदी नहीं तो सदी नहीं “का अप्रतिम नारा देने वाले समर्थ दादा गुरु जी बताते हैं कि पिछले दशकों में नर्मदा का- रेत मिट्टी के कटाव और उसके आसपास बन रहे अनाधिकृत निर्माणों के कारण अत्यधिक नुकसान हुआ है जिसकी भरपाई किया जाना आवश्यक है. अन्यथा संपूर्ण विश्व इसकी त्रासदी का किसी ना किसी प्रकार शिकार बन सकता है क्योंकि नर्मदा विश्व की सबसे प्राचीन नदियों में से एक गिनी जाती है और भारत को यह गौरव हासिल है कि नर्मदा भारत में है भारत की चमत्कारी नदियों में गंगा नर्मदा विशेष रूप से गिनी जाती है जिसमें नर्मदा को गंगा जी की बड़ी बहन माना जाता है भारतीय पुराणों में नर्मदा की बड़ी महिमा बताई गई है जिससे आज का समाज अनभिज्ञ सा लगता है, नर्मदा मिशन के संस्थापक , समर्थ दादा गुरु सभी आडम्बरो से दूर कभी-कभी एक जैन मुनि की तरह लगते हैं जिनका जीवन का उद्देश्य केवल त्याग समर्पण और प्रक्रति संरक्षण ही है. विश्व में प्रकृति संरक्षण के लिए और बढ़ती हुई पर्यावरण समस्याओं के लिए जहां लोग अपने संपूर्ण संसाधनों के साथ प्रदर्शन आदि करते हैं वही भारत की इस पुण्य भूमि मध्य प्रदेश नर्मदा पुरम के आसपास 13 वर्षों से संचालित नर्मदा मिशन के संस्थापक धूप सर्दी और किसी भी मौसम की मार से अप्रभावित केवल एक वस्त्र में लगातार निराहार रहकर निरंतर चल रहे हैं दादा समर्थ गुरु जहां नर्मदा के पारलौकिक स्वरूप पर चर्चा करते हुए उसकी शक्ति को असीमित बताते हैं वहीं मध्यप्रदेश में एवं भारत में अन्य स्थानों पर नर्मदा की समस्याओं की अनदेखी होते देख उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्होंने लगभग हर स्तर पर नर्मदा के लिए समर्पित लोगों को जागरूक करने का कार्य किया है और करते रहेंगे वे जहां भी जाते हैं वहां लोगों का हुजूम उनके साथ चल पड़ता है एक सच्चे संत के रूप में वे स्वयं ही प्रतिष्ठित है ऐसा संत एक ऐसा सामाजिक सरोकार रखने वाला बैरागी जिसकी भाषा और जिसके शब्द सुनने वालों के हृदय को झकझोर देते हैं देशकाल क़े आडम्बर से एवं समाज में फैली चकाचौंध, निज प्रतिष्ठा और सम्मान के लोलुप लोगों से इतर वे अकेले ही स्वयं के बलबूते पर मां नर्मदा को समस्याओं से मुक्त कराने निकल पड़े हैं और लगभग 28 माह से निराहार और लगातार परिक्रमा भी करते हुए और जागरण और कार्यक्रमों को करते हुए उनके आचार व्यवहार में कोई भी परिवर्तन ऐसा दिखाई नहीं देता जिससे उनके किसी भी तरह रोग अथवा किसी भी तरह के कष्ट का या कमजोरी का भान हो और इस सब के लिए पूछने पर मां नर्मदा के जल की शक्ति को ही अपनी शक्ति का स्त्रोत बताते हैं. नर्मदा की वर्तमान स्थिति को लेकर व्यथित संत समर्थ दादा गुरु बताते हैं कि अपने उद्गम स्थल से और आगे चलकर कई अन्य स्थलों पर नर्मदा लगभग पूरी तरह सूख गई है बल्कि उन सूखे हुए स्थानों पर कुछ लोगों ने निर्माण और कुछ लोगों ने खेती भी प्रारंभ कर दी है जिसके कारण थोड़े दिनों बाद या कहना भी मुश्किल होगा कि यहां कभी नर्मदा जी बहती थी और इसका एक बड़ा नुकसान और जड़ी बूटी वाले क्षेत्रों के लिए भी हुआ है जो नर्मदा के आसपास किनारों पर नर्मदा के जल से ही पल्लवित और पोषित होती थी उन जड़ी बूटियों के संरक्षण के लिए भी समर्थ दादा गुरु के पास विस्तृत योजना है वही नर्मदा मिशन के संस्थापक दादा गुरु देव वृक्ष की स्थापना नाम की योजना से युवाओं में और अन्य समाज के लोगों में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक अप्रतिम संस्कार और कार्य करने का उद्देश्य दे रहे हैं पर्यावरण के लिए उनके मन में एक अलख़ जगा रहे हैं नर्मदा किनारे पर उगने वाली जड़ी बूटियां संसार भर में अपनी चमत्कारी शक्तियों के लिए विख्यात है उनकी चमत्कारी उपचार शक्ति विदेशों में भी लोकप्रिय है किंतु लगातार नर्मदा जल की समस्याओं की अनदेखी के कारण इनके सदा के लिए लोप हो जाने का खतरा बढ़ गया है जहां एक और दुनिया पर्यावरण संरक्षण एवं ग्लोबल वार्मिंग के लिए और इसके जागरण के लिए लाखों करोड़ों डॉलर खर्च कर रही है वहीं भारत में भी सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए कई नए कानून लाई है और संरक्षण के लिए जागरण का कार्य किया जा रहा है मगर जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले कार्यकर्ता और समर्थक गुरु जैसे अध्यात्मिक चेतना पुरुष इस कार्य को चमत्कारिक रूप से आगे बढ़ा सकते हैं दादा गुरु केवल यहीं तक नहीं रुकते बल्कि वे भारत के ग्राम स्वराज और ग्रामीण संस्कृति के प्रति भी काफी आग्रही हैं रात को विश्राम के समय चलने वाले उनके प्रवचनो में सामाजिक सुधार, प्रकृति संरक्षण, जीव मात्र से प्रेम और नर्मदा के जल की शक्ति का प्रतिपादन देखा जा सकता है .
रिपोर्टर चंद्रकांत सी पूजारी

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